सबकुछ-प्यार से
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हर आम आदमी लोकपाल से साथ है , हर कोई भ्रष्टाचार से परेसान है , लेकिन एक दोहरी स्थिति पैदा हो गयी है , दिल पुरे तरीके से लोकपाल से साथ है , दिमाग में ये ही आता है , इसे तो सरकार के साथ एक और सरकार पैदा हो जाएगी- हमारा देश लोकतन्त है , हमारी आदते भी ऐसी हो चुकी है की बड़ा बदलाव से हमेसा डर लगता है , बड़ा बदलाव बड़ा रिस्क , हम तो हमेसा एक के बाद एक सीड़ी चड़ने वाले है.
कुल मिलाकर हमें एक बीच का रास्ता ढूंढ़ना पड़ेगा . लोकपाल का एक ऐसा रूप तेयार करे , जिसमे जनता की सक्ति हो और उसका रोल भी . पूरी तरहे से पारदर्शिता भी , सिस्टेमेटिक भी , सरकार और अन्ना जी तो बेठ कर एक बीच का रास्ता निकलना पड़ेगा , राष्ट्रीय हित में , जनता के लिए , जिससे हमारा दिल और दिमाग तो संतोष मिल सके .
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