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लघु कथा
मै साहिबाबाद से अपने कनॉट प्लेस स्थित ऑफिस के लिए सुबहें 9 बजे के आस पास निकलता था . इसी समय पर ज्यादातर लोकल रेलगाड़िया साहिबाबाद से न्यू दिल्ली की तरफ जाती है . हर किसी को ऑफिस जाने की जल्दी है लेकिन मेरा इंतजार कुछ अलग था . मै रेलवे प्लेटफोर्म पर खड़ा रहता लेकिन मेरी निगाहे तो सीढियों की तरफ लगी रहेती . कौन था वो , एक मुस्कराहट , एक प्यारा सा अहसास , एक अनजानी खुशी , उसकी पहचान के लिए बस ये शब्द मेरे पास थे . उसका ऑफिस मेरे ऑफिस के नजदीक ही था इसलिए अक्सर वो लंच टाइम पर किसी जेवेलरी शॉप , गारमेंट शॉप या किसी आइस क्रीम की रेहड़ी पर टकरा जाती . शाम को मै ऑफिस से जल्दी जल्दी निकलकर शिवाजी ब्रिज रेलवे स्टेशन पर उसका इंतजार करता . जिंदगी मै एक अजीब से ख़ुशी महसूस होती , इन सब खुशियों के बीच कभी कभी एक सोच अक्सर मुझे झंझोड़ती, मै एक शादीशुदा आदमी होकर ,क्या यह सब ठीक कर रहा है . मुझे क्या ये हक हासिल है या ये कोई बेमानी तो नहीं . उसकी एक मुस्कराहट कभी मुझे आपनी मर्यादा तोड़ने पर विवश करती तो कभी उसका गंभीर चेहरा मेरे बढते कदमो को रोक देता जैसे वो कोई मज़बूरी बया कर रही हो .
ये कैसा कन्फुसन सा था , मुझे लग रहा था जैसे मै डिप्रेशन मै चला जाउगा , लगता था जेसे सोचने की सारी ताकत ख़तम हो गयी हो . एक दिन मैने अपनी सारी ताकत पूरी ईमानदारी से झोक दे. एक नयी सुबह , एक नया नजरिया , एक नयी रोशनी के साथ मेरे सभी सवालो का जवाब लेकर आया . क्या प्यार जताने का ही नाम है, क्या इसे हम अपने अन्दर सजो के नहीं रख सकते और जवाब था हां. बस यही वह खुबसूरत मोड़ था , जिसके बाद मेरे सभी कन्फुसन ख़तम हो गए और मन के अन्दर खुशियों का मीठा मीठा अहसास ही रह गया . जो आज भी मुझे हमेसा खुश रखता है. आज भी उसी साहिबाबाद के रेलवे प्लेटफोर्म के सीढियों पर उसका इंतजार करता हु. आज भी उसको देखता हु लेकिन बिना किसी सवाल के.
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