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व्यावसायिक होता मीडिया

सबकुछ-प्यार से
सबकुछ-प्यार से
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समय बदलता है , हर क्षेत्र उसके अनुसार बदलने की कोशिश करता है , वजह भी सही है नहीं बदले तो पीछे रह जाने का डर, डर अपने आस्तिव के खात्मे का. नयी नयी तकनीक आ रही है , केल्कुलेटर से कंप्यूटर , लैपटॉप , टेबल लेट , दुनिया बदल रही है . यही परिवर्तन जब कला के क्षेत्र में होता है तो दिल को अच्छा नहीं लगता , यही ऐसा क्षेत्र है जिसमे इन्सान शुद्धता ढूंढ़ता है. शिक्षा के क्षेत्र जब से व्यावसायीकरण हुआ है हम इसके दुष्ट परिणाम देख रही है , मीडिया ने भी कई बार इसको उजागर किया है , मोटी मोटी फीस , और शिक्षा के नाम कर सिर्फ छलावा .

अब हम मीडिया की बात करते है , इसमें भी अंधी दौड़ चल रही है , हर चैनल को जल्दी है नयी से नयी चटपटी न्यूज़ देने की. आगे बढना है , हर कोई बोल रहा है ये सिर्फ एक्स्लुसिवे हमारे चैनल पर देखिये . न्यूज़ के टोपिक -बाबा ने बलात्कार किया , १२ साल की लड़की को गाव में निवस्त घुमाया गया, ऐसे-ऐसे टोपिक है की मुझे भी लिखने में संकोच हो रहा है . पर हमारी मीडिया को कोई फरक नहीं पड़ता . मीडिया का सारा फोकस न्यूज़ को हेड लाइन दिलवाने में है , न कोई मर्यादा , संस्कृति , नेतिकता तो बहुत दूर की बात है. आज की डेट में अगर कोई सबसे ज्यादा अन्धविश्वास फेला रहा है वो है मीडिया , रोज एक भ्रामक न्यूज़ , ये चमत्कार वो चमत्कार , आपकी राशी का हाल, आप ये उपाए करे वो करे सब बिना सिर पैर का .

असली लेखक तो जेसे रहे ही नहीं है सब पेसो के लिए लिख रहे है , चटपटा – चाट परोश रहे है बस. किसी की कोई भी बात दिल को नहीं छूती , अब लेखक भी नोकरी करते है , वो भी वोही लिखेगे जो लोगो को पसंद हो , छोटा सा , सरल सा , चटपटा सा , जायदा पड़ने का टाइम भी नहीं है किसी के पास.

व्यावसायिक होना शायद मीडिया की मज़बूरी हो पर उसका समाज के प्रति एक कर्तव्य भी है . वो समाज को एक नयी दिशा देता आया है . मीडिया को अपने धर्म का पालन भी करना चाहिए , खबर दे पर लोगो को जागरूप करने के लिए ना की भ्रामक करने के लिए .

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